*विज्ञान हमें कहां से कहां ले आया*

*पहले :-* वो कुँए का मैला कुचला पानी पीकर भी 100 वर्ष जी लेते थे
*अब :-* RO का शुद्ध पानी पीकर 40 वर्ष में बुढ़े हो रहे हैं

*पहले :-* वो घानी का मैला सा तेल खाके बुढ़ापे में भी मेहनत कर लेते थे।
*अब :-* हम डबल-ट्रिपल फ़िल्टर तेल खा कर जवानी में भी हाँफ जाते हैं

*पहले :-* वो डले वाला नमक खाके बीमार ना पड़ते थे।
*अब :-* हम आयोडीन युक्त खाके हाई-लो बीपी लिये पड़े हैं

*पहले :-* वो नीम-बबूल कोयला नमक से दाँत चमकाते थे और 80 वर्ष तक भी चबा चबा के खाते थे
*अब :-* कॉलगेट सुरक्षा वाले रोज डेंटिस्ट के चक्कर लगाते हैं

*पहले :-* वो नाड़ी पकड़ कर रोग बता देते थे
*अब :-* आज जाँचे कराने पर भी रोग नहीं जान पाते हैं

*पहले :-* वो 7-8 बच्चे जन्मने वाली माँ 80 वर्ष की अवस्था में भी खेत का काम करती थी।
*अब :-* पहले महीने से डॉक्टर की देख-रेख में रहते हैं | फिर भी बच्चे पेट फाड़ कर जन्मते हैं

*पहले :-* काले गुड़ की मिठाइयां ठोक-ठोक के खा जाते थे
*अब :-* खाने से पहले ही शुगर की बीमारी हो जाती है

*पहले :-* बुजुर्गों के भी घुटने नहीं दुखते थे
*अब :-* जवान भी घुटनों और कमर के दर्द से कहराता है

पहले 100w के बल्ब जलाते थे तो बिजली बिल 200 रुपये आता था
अब 9w की c.f.l में 2000 का बिल
*समझ नहीं आता ये विज्ञान का युग है या अज्ञान का*?
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“विज्ञान हमें कहां से कहां ले आया”
*इस पोस्ट का जवाब “वास्तव” में :*
*पहले* :- वो कुँए का मैला कुचला पानी पीकर भी 100 वर्ष जी लेते थे
*अब* :- RO का शुद्ध पानी पीकर 40 वर्ष में बुढ़े हो रहे हैं
*वास्तव* पहले (पिछली सदी के आरंभ में) यहाँ के लोग 100 वर्ष नहीं जीते थे, औसत आयु करीबन 40-45 वर्ष थी। अब वह बढ़ कर 70 से ज्यादा हुई है। पहले महामारी से लाखों लोग मरते थे। अब शुद्ध पानी के कारण महामारी कम हुई है। 

*पहले* :- वो घानी का मैला सा तेल खाके बुढ़ापे में भी मेहनत कर लेते थे।
*अब* :- हम डबल-ट्रिपल फ़िल्टर तेल खा कर जवानी में भी हाँफ जाते हैं
 *वास्तव* पहले पिछड़ा देश होने के कारण हर जरूरत के लिए शारीरिक मेहनत करनी पड़ती थी, अब बहुत सारे पैसे बिना शारीरिक काम किए मिलते हैं! मेहनत की आदत छूट जाने से आदमी जवानी में हाँफ जाता है।

*पहले* :- वो डले वाला नमक खाके बीमार ना पड़ते थे।
*अब* :- हम आयोडीन युक्त खाके हाई-लो बीपी लिये पड़े हैं
*वास्तव* बदली हुई जीवन शैली और तनाव के कारण बीपी लिये  पड़े हैं, आयोडिन युक्त नमक की कोई भूमिका बीपी में नहीं है। 

*पहले* :- वो नीम-बबूल कोयला नमक से दाँत चमकाते थे और 80 वर्ष तक भी चबा चबा के खाते थे
*अब* :- कॉलगेट सुरक्षा वाले रोज डेंटिस्ट के चक्कर लगाते हैं
*वास्तव* पहले डेन्टिस्ट थे कहाँ! नीम-हकीम दांत उखाड़ कर फेंक देते थे। अब सड़े हुए दांत भी बचाए जाते हैं। 

*पहले* :- वो नाड़ी पकड़ कर रोग बता देते थे
अब :- आज जाँचे कराने पर भी रोग नहीं जान पाते हैं
*वास्तव* पहले नीम-हकीम उल्लू बनाते थे। नाड़ी से धड़कन की गति का पता चलता है, रोगों का नहीं। नाड़ी देख कर लड़की को गर्भवती बताने वाला डॉक्टर केवल फिल्मों में दिखाई देता था। 

*पहले* :- वो 7-8 बच्चे जन्मने वाली माँ 80 वर्ष की अवस्था में भी खेत का काम करती थी।
*अब* :- पहले महीने से डॉक्टर की देख-रेख में रहते हैं | फिर भी बच्चे पेट फाड़ कर जन्मते हैं
*वास्तव* आज भी मेहनत का काम करने वाली महिला की डिलिवरी पेट फाड़ कर नहीं होती है। बिना वजह पेट फाड़ने वाले डॉक्टर पैसों के लालची है।

*पहले* :- काले गुड़ की मिठाइयां ठोक-ठोक के खा जाते थे
*अब* :- खाने से पहले ही शुगर की बीमारी हो जाती है
*वास्तव* बदली हुई जीवन/खानपान शैली के कारण शुगर की बीमारी हो जाती है।

*पहले* :- बुजुर्गों के भी घुटने नहीं दुखते थे
*अब* :- जवान भी घुटनों और कमर के दर्द से कहराता है
*वास्तव* व्यायाम और मेहनत की कमी और बदली हुई जीवन शैली के कारण घुटनों में दर्द होता है। 

*पहले* 100w के बल्ब जलाते थे तो बिजली बिल 200 रुपये आता था
*अब* 9w की c.f.l में 2000 का बिल
समझ नहीं आता ये विज्ञान का युग है या अज्ञान का?
*वास्तव* अब फ्रिज, एसी, माइक्रोवेव भी चलाते हैं, और बिजली का उत्पादन खर्च भी बढ़ा है। पहले मासिक वेतन 200 रुपये हुआ करता था, आज लाख के करीब है।
इस में विज्ञान का क्या कसूर है?
*विज्ञान से बना मोबाइल, कंप्यूटर, वाईफ़ाई, बिजली आदि का उपयोग कर के विज्ञान को बिना वजह कोसने वाले को केवल मूर्ख ही नहीं, नमक-हराम भी कहना चाहिए।*

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