अंग्रेजों ने हमारे वेदों से विज्ञान चोरी किया यह दावा, काकतालीय न्याय का योग्य उदाहरण

 यदि हमारे पूर्वजों को हवाई जहाज बनाना नहीं आता, तो हमारे पास "विमान" शब्द भी नहीं होता.!


यदि हमारे पूर्वजों को Electricity की जानकारी नहीं थी, तो हमारे पास "विद्युत" शब्द भी नहीं होता। 


यदि "Telephone" जैसी तकनीक प्राचीन भारत में नहीं थी तो, "दूरसंचार" शब्द हमारे पास क्यों है ?


Atom और electron की जानकारी नहीं थी तो अणु और परमाणू शब्द कहाँ से आये? 


Surgery का ज्ञान नहीं था तो, "शल्य चिकितसा" शब्द कहाँ ये आया?


विमान,  विद्युत, दूरसंचार, ये शब्द स्पष्ट प्रमाण है, कि ये तकनीक भी हमारे पास थी। 


बिना परिभाषा के कोई शब्द अस्तित्व में रह नहीं सकता। 


सौरमण्डल में नौ ग्रह है व सभी सूर्य की परिक्रमा लगा रहे है, व बह्ममाण्ड अनन्त है, ये हमारे पूर्वजों को बहुत पहले से पता था। रामचरित्र मानस में काक भुशुंडि - गरुड संवाद पढ़िये, बह्ममाण्ड का ऐसा वर्णन है, जो आज के विज्ञान को भी नहीं पता।


अंग्रेज़ जब 17-18 सदी में भारत आये तभी उन्होंने विज्ञान सीखा,  17 सदी के पहले का आपको कोई साइंटिस्ट नहीं मिलेगा। 


17 -18 सदी के पहले कोई  आविष्कार यूरोप में नहीं हुआ, भारत आकर सीखकर, और चुराकर अंग्रेज़ों ने अविष्कार करे। 


भारत से केवल पैसे की ही लूट नहीं हुयी, ज्ञान की भी लूट हुयी है। 


वेद ही विज्ञान है और हमारे ऋषि ही वैज्ञानिक हैं.!



इस पोस्ट को जवाब


*अंग्रेजों ने हमारे वेदों से विज्ञान चोरी किया यह दावा, काकतालीय न्याय का योग्य उदाहरण*

(उत्तम जोगदंड)  


आजकल सोशल मीडिया में कुछ ऐसे पोस्ट/वीडीओ वाइरल हो रहे हैं जिसका संक्षेप में आशय यह है की अंग्रेजों के पास जो विज्ञान का समस्त ज्ञान है वह हमारे देश के वेदों से ही 17-18वीं सदी में चोरी किया हुआ है। हमारे यहाँ आने से पहले अंग्रेजों ने कोई भी आविष्कार नहीं किया था। अंग्रेज़ जब 17-18वीं सदी में भारत आये तब उन्हों ने हम से विज्ञान सीख लिया तब जा कर वे आविष्कार कर सकें।  अंग्रेजों ने हमारे धन के साथ साथ हमारा ज्ञान भी लूट लिया, वेद ही विज्ञान है, आदि।  


अपने दावे के समर्थन में हमारे ये विद्वान मित्र यह कहते हैं की विमान, विद्युत, दूरसंचार, अणु, परमाणु, शल्य चिकित्सा आदि शब्द हमारे पास हैं इसका मतलब ये है की ये सभी तकनीक हमारे पास थी, इसी कारण ये शब्द अस्तित्व में हैं। सौरमंडल, अनंत ब्रह्मांड यह सभी ज्ञान हमारे पूर्वजों के पास था। ब्ला ब्ला ब्ला.......  


*ऐसे पोस्ट्स/वीडीओज को उत्तर:* 


अपनी सभ्यता में जो भी अच्छी, उदात्त बातें हैं उन पर अभिमान, गर्व होना (और बुरी बातों पर शर्मसार होना) बिलकुल जायज है। लेकिन दूसरों की प्रगति को नीचा दिखाने के लिए उन पर अपने ज्ञान के चोरी का इल्जाम लगाना, वह भी अपने पास जो है ही नहीं ऐसी बातों का झूठा दाखिला देकर लगाना, इसे आत्म-वंचना के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता। इन महानुभावों के दावों पर अब विचार करते हैं: 

1) 17 -18 सदी के पहले कोई आविष्कार यूरोप में नहीं हुआ, भारत आकर सीखकर, और चुराकर अंग्रेज़ों ने आविष्कार किए यह दावा ही गलत है। क्यूँ की अंग्रेज़ यहाँ आने से पहले पश्चिमी दुनिया में कई आविष्कार हुए थे। इन में से एक है दूरबीन का वर्ष 1608 में लिपरशे द्वारा किया गया आविष्कार। दूरबीन की सहायता से गैलीलियो ने अपने सिद्धान्त प्रसिद्ध किए। उस पर चर्च ने (मतलब धर्म ने) आक्षेप लिया और इस अपराध के लिए उसे आजन्म गृह-कैद की सजा सुनाई। इस के बाद वहाँ धर्म के चंगुल से विज्ञान कुछ मुक्त हुआ और वहाँ की इंसानी प्रज्ञा अपना जलवा दिखाती रही। एक के बाद एक नए नए आविष्कार वहाँ के वैज्ञानिकों ने किए। इस का संबंध वेदों से होने के कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अतः, अंग्रेज़ यहाँ आने के बाद ही वहाँ नए नए आविष्कार हुए ये मानना केवल काकतालीय न्याय का उत्तम उदाहरण है। मतलब ड़ाल पर कौवा बैठा और ड़ाल टूट गयी....।  

2) अंग्रेज़ भारतवर्ष में व्यापार करने के लिए आये थे। वे अपने पैर इस भूमि में 19वीं सदी में (1818 के युद्ध के बाद) पूरी तरह जमा सकें। देखते हैं, उस समय भारतवर्ष के कथित वेदों में, विज्ञान में पारंगत, महा-ज्ञानी लोग क्या कर रहे थे? पेशवा रियासत में अस्पृश्य जाती के लोगों के गले में मटका और पीछे झाड़ू लगा कर अमानुषता की सभी सीमाएं लांघ रहे थे, महिलाओं को सती-प्रथा के नाम पर, पति की चीता पर जिंदा जला रहे थे। वर्ष 1814 में जॉर्ज स्टीफनसन ने भांप का रेल इंजन बनाया था। तब हम बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी आदि चला रहे थे और उसे नींबू मिर्च लटका रहे थे। वर्ष 1785 में एडमंड कार्टराइट ने पहला पावरलुम बनाया था तब हम हैंडलूम चला रहे थे। वर्ष 1800 में वोल्टा ने प्रथम बैटरि का आविष्कार किया और एडिसन ने बल्ब का आविष्कार किया तब हम घासलेट की लालटेन जला रहे थे। लिस्ट बड़ी लंबी है। लेकिन इन कथित ज्ञानी लोगों को शर्मिंदा और नंगा करने के लिए इतना काफी है।

3) यहाँ वेदों में जो कथित विज्ञान है वह तो संस्कृत भाषा में ही है। बहुजन समाज के जतियों (एससी एसटी ओबीसी) को तो बीसवीं सदी के मध्य तक यह ज्ञान हासिल करना और संस्कृत सीखना अपराध था, जिस के लिए कठोर सजा थी। संस्कृत भाषा और ये ज्ञान केवल ब्राह्मण लोगों का एकाधिकार था। फिर सवाल ये पैदा होता है की हमारी देववाणी संस्कृत भाषा विदेशी अंग्रेज़ कहाँ से सीखे? जरूर किसी ब्राह्मणने/कई ब्राह्मणों ने ये कथित विज्ञान अंग्रेजों को दिया होगा। या तो मजबूरी में या तो किसी लालच में आ कर। कौन थे ये ब्राह्मण? उन्हों ने हजारो वर्ष ये ज्ञान हमारे ही देश के लोगों को क्यूँ नहीं दिया? ठीक है, बहुजनों को ज्ञान नहीं दिया। तो स्वयं उस ज्ञान के आधार पर कुछ आविष्कार क्यूँ नहीं किए? क्यूँ भारत को मध्ययुगीन दलदलमें फंसाए रखा?      

4) ये कहते हैं, विमान, विद्युत, दूरसंचार, अणु, परमाणु, शल्य चिकित्सा आदि शब्द हमारे पास हैं इसका मतलब ये है की ये सभी तकनीक हमारे पास थी। (वैसे तो सुपरमैन, स्पाइडरमैन, बैटमैन जैसे शब्द पश्चिमी देशों में है। लेकिन वहाँ कोई ये मूर्खतापूर्ण दावा नहीं करता की इस की तकनीक हमारे पास है या वास्तव में उन के यहाँ ये सब थी या है।)  इन में से कई शब्द तो पश्चिमी लोगों द्वारा किए गए आविष्कारों के प्रतिशब्द है जो बाद में बनाए गए हैं। और, अगर यह तकनीक हमारे पास थी तो अब वह कहाँ हैं? पिछले चार हज़ार सालों से वह कहाँ छुपी है? कौनसे ग्रंथ में, किस नंबर के श्लोक में है? अंग्रेजों ने वेदों से ज्ञान अगर चुराया होगा तो वेद अभी भी यहाँ मौजूद हैं ना? फिर उस में स्थित विज्ञान का उपयोग करने से इन विद्वान लोगों को किसने रोका था? रोका है? आज तक इस देश के वैज्ञानिक को विज्ञान विषय में केवल एक नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है। वे हैं डॉ. सी वी रमन। और उन की खोज का संबंध उन की अपनी प्रज्ञा से है न की किसी धर्म-ग्रंथ से। 

5) नौ ग्रहों का ज्ञान यहाँ पहले ही था ऐसा दावा किया जाता है। लेकिन यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो (प्लूटो तो अब ग्रह रहा ही नहीं, अतः केवल आठ ही ग्रह हैं।) ये ग्रह तो भारतियों को पता ही नहीं थे। वे अपने ज्योतिष में चंद्र को भी ग्रह कहते हैं, जो वास्तव में पृथ्वी का उपग्रह है। सूर्य को भी वे ग्रह मानते हैं जो की एक तारा हैं। यूरेनस को बाद में पंचांग में जोड़ दिया गया और उसे हर्षल (यूरेनस के शोधकर्ता का नाम) दे दिया। राहू और केतू ये तो काल्पनिक बिन्दु हैं, इन्हे भी ये ग्रह मानते हैं। इन के अनुसार पृथ्वी के इर्द गिर्द सूर्य घूमता है। उन के कथित ग्रन्थों में यह भी कहा जाता है की पृथ्वी शेषनाग के मस्तक पर स्थिर है और जब भी शेषनाग हिलता है तब भूचाल आ जाता है। वास्तव में हमारे देश के पुरातन जमाने के लोगों द्वारा दृश्यमान ग्रहों, नक्षत्रों के उदयास्त, स्थान, मार्ग का अचूक गणित खोज निकाला है। वाकई ये बहुत बड़ा आविष्कार है, जिस पर गर्व करना चाहिए। लेकिन उन के बाद वाले ज्ञानी लोगों ने इस आविष्कार को आगे ले जाने के बजाय उन ग्रहों का डर दिखा कर उसे ज्योतिष शास्त्र का नाम दे कर लोगों को लूटने और अपनी कमाई बढ़ाने का जरिया बना दिया और हमारी इस विशाल विरासत को संकुचित, कुंठित कर दिया।   

6) आज हमारे यहाँ जो भी वैज्ञानिक ज्ञान है, एटम बम है, आण्विक शक्ति है, मिसाइल है, कम्प्युटर प्रणाली है, कम्प्युटर हार्डवेयर है, टेलीफोन-मोबाइल है, बाइक-कार-बस-विमान-रेल-जंगी जहाज है, दवाई है, सीटी स्कैन है, (और भी बहुत कुछ है) इन के मूलभूत अनुसंधान, आविष्कार में हमारे ग्रन्थों का और हमारे देश का कोई योगदान नहीं है। ये कटु वास्तव है। हमारे वैज्ञानिक उस पर काम कर रहे हैं जिस की खोज पहले की जा चुकी है। हमारे विद्वान लोग पश्चिमी देशों में जैसे ही कोई नया आविष्कार हो जाता है, तब जाग जाते हैं और कहते हैं ये तो हमारे वेदों में पहले से ही है। इस पर दुनिया हँसती है। हमारे वेद फिर मज़ाक का विषय बन जाते है। ये लोग एडवांस में ये नहीं कहते की हमारे वेदों में फलां फलां आविष्कार है जो दुनिया में अन्यत्र अभी तक हुआ ही नहीं।   

हमारे इन सभी ‘वेद ही विज्ञान’ पंथ के लोगों से अनुरोध है की वेदों में और क्या क्या विज्ञान है, भविष्य में क्या क्या आनेवाला है और कौन कौनसा वैज्ञानिक आविष्कार वेदों में पहले से ही है, इस की लिस्ट संदर्भ के साथ तुरंत जारी करें। ताकि वेद, आप जैसे लोग तथा देश मज़ाक का विषय न बन जाये। 

 

पश्चिमी देशों ने विज्ञान को धर्म से अलग किया इस कारण वहाँ विज्ञान में काफी बड़े पैमाने पर प्रगति हुई। लेकिन हमारे यहाँ विज्ञान को धर्म के साथ जबर्दस्ती जोड़कर विज्ञान को 16वीं सदी में घसीट कर लिया जा रहा है। यह इस देश के वैज्ञानिक प्रगति के लिए घातक है।

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