क्या शिवलिंग रेडियोएक्टिव होते हैं?

 क्या शिवलिंग रेडियोएक्टिव होते हैं?


हाँ १००% सच है!!


भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठा लें, हैरान हो जायेंगे! भारत सरकार के न्युक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।


▪️ शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्युक्लियर रिएक्टर्स ही तो हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है, ताकि वो शांत रहें।


▪️ महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्युक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं।


▪️ क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।


▪️ भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।[1]


▪️ शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।


▪️ तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी।


▪️ ध्यान दें कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।


▪️ जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।


▪️ आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में ऐसे महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक ही सीधी रेखा में बनाये गये हैं। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये? उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडु का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79°E 41’54” Longitude की भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।


▪️ यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंचभूत कहते हैं। पंचभूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्हीं पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिवलिंगों को प्रतिष्टापित किया गया है।


जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, 

आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, 

हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, 

पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम् में है और अतं में 

अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है!


वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।


▪️ भौगोलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। इन पांच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था, और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इस के पीछे निश्चित ही कोई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा।


▪️ इन मंदिरों का करीब पाँच हज़ार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं थी। तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को प्रतिष्टापित किया गया था? उत्तर भगवान ही जानें।


▪️ केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते हैं।आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयोग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है, यह आज तक रहस्य ही है।


श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है।

तिरुवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। 

अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। 

कंचिपुरम् के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और 

चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान की निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।


▪️ अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच लिंगों को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्टापित किया गया है। हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसी विज्ञान और तकनीकी थी जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होंगे जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते हैं। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है। संभवतया यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यान में रखते हुए बनाये गये हों जो 81.3119° E में पड़ता है!? उत्तर शिवजी ही जाने।


कमाल की बात है "महाकाल" से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच सम्बन्ध देखिये


उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी भी है रोचक-


▪️ उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी


▪️ उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी


▪️ उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी


▪️ उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी


▪️ उज्जैन से मल्लिकार्जुन- 999 किमी


▪️ उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी


▪️ उज्जैन से त्रयंबकेश्वर- 555 किमी


▪️ उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी


▪️ उज्जैन से रामेश्वरम्- 1999 किमी


▪️ उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी


हिन्दू धर्म में कुछ भी बिना कारण के नहीं होता था ।


उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है, जो सनातन धर्म में हजारों सालों से मानते आ रहे हैं। इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं करीब 2050 वर्ष पहले ।


और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क) अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायी गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला। आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये।


हर हर महादेव


*स्त्रोत: वंदे मातृसंस्कृतम्*

जय श्री राम

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*क्या शिवलिंग रेडियोएक्टिव होते हैं?*

*इस पोस्ट का जवाब*

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*(हर मुद्दे का जवाब मूल मुद्दे/परिच्छेद के नीचे ब्रैकेट में दिया है।)*


*(जवाब देने से पहले, यह स्पष्ट करना चाहते हैं की देश के हर व्यक्ति को संविधान द्वारा धर्म तथा उपासना की स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है। अतः अपने विश्वास और श्रद्धा के अनुसार इस अधिकार का लाभ हर कोई उठा सकता है। उपासना, श्रद्धा का पालन कर सकता है।  लेकिन विश्वास या श्रद्धा को विज्ञान के साथ तर्कहीन तथ्यों का सहारा ले कर जोड़ना गलत है। अगर इस प्रकार विश्वास को विज्ञान के साथ जोड़ने की कोशिश की जाती है तो इस बात की वैज्ञानिक नियमों के अनुसार जाँच-परख भी हो जानी चाहिए। इस भूमिका के साथ,  इस पोस्ट का जवाब दिया जा रहा है। इस में किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का उद्देश नहीं है।)*   


🔴क्या शिवलिंग रेडियोएक्टिव होते हैं?

हाँ १००% सच है!!

*🟢(यह 100% झूठ है। समस्त भारतीय लोगों की धारणा है की वह शिव 'लिंग' है* *ये शिवलिंग रेडियोएक्टिव कब से हुए? अगर ये वाकई रेडियोएक्टिव है तो वह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक है। उस से दूर ही रहना बेहतर है। लेकिन अब तक शिवलिंग के रेडिएशन से बीमार नहीं हुआ, इस का मतलब वह रेडियोएक्टिव नहीं है।)* 


🔴भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठा लें, हैरान हो जायेंगे! भारत सरकार के न्युक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है।

*🟢(इस बात का कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है और अगर है तो लेखक ने वह प्रस्तुत नहीं किया है। इस का अर्थ यह भी होता है की ज्योतिर्लिंग के अलावा अन्य शिवलिंग रेडियोएक्टिव नहीं हैं ये बात लेखक स्वयं ही मान रहे हैं।)*   


🔴शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्युक्लियर रिएक्टर्स ही तो हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है, ताकि वो शांत रहें।

*🟢(शिवलिंग न्युक्लियर रिएक्टर्स है इस की खोज कब हुई? उस पर केवल जल चढ़ाया जाता है इस लिए शिवलिंगों को न्युक्लियर रिएक्टर्स कहना तथ्यहीन है। यह दावा लेखक का न्युक्लियर रिएक्टर्स पर अज्ञान दर्शाता है। यह भी कहा है की, पानी चढ़ाने ने वह शांत रहता है। लेकिन पुरातात्विक विभागों को कई शिवलिंग उत्खनन में पाये जाते है, जो पानी के बिना बरसों पड़े रहते हैं। वे शिवलिंग अशांति के कोई भी लक्षण नहीं दिखाते या उन का आण्विक विस्फोट नहीं होता।  और शिवलिंग पर दूध भी चढ़ाया जाता है, वह किस लिए?)*  


🔴महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्युक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं।

*🟢(बिल्व पत्र, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्युक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अगर ये इस प्रकार के होते तो आण्विक भट्टियों में अवश्य उपयोग में लाये जाते।)*


🔴क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता।

*🟢(इस के कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं कराये गए हैं। वैसे, रेडियोएक्टिव पानी को खुला छोड़ना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसे लांघा नहीं जाता इस का कारण पानी रेडियोएक्टिव है, यह कहना तथ्यहीन एवं हास्यास्पद है। पानी का रेडियोएक्टिव होना और उसे न लांघना इस का क्या तर्क है। अगर रेडियोएक्टिव पानी का असर होना है तो उस के आस पास रह कर भी होगा, उसे लांघने की जरूरत नहीं।)*  


🔴भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।[1]

*🟢(एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन अभियांत्रिकी आवश्यकता के अनुसार होता है। इस का संबंध शिवलिंग से नहीं है। कई इमारतें भी शिवलिंग के आकार की बनी हैं।)*


🔴शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है।

*🟢(ऊपर कहा है की यह पानी रेडियोएक्टिव होता है। और अब लिखा है वह नदी के जल के साथ मिलकर औषधि का रूप लेता है। यह तो पूर्णतः विरोधाभासी कथन है।)* 


🔴तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी।

*🔴(प्रलय या संकट प्रकृति के नियमों के अनुसार आते है। महादेव शिवशंकर नाराज होने से आते है ऐसे कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं कराये गए हैं। केदारनाथ मे जो हुआ था (२०१२ मे?) वह प्रलय नही तो और क्या था। भले शिवजी ने अपना मंदिर बचाया हो, लेकिन आसपास के कई गाव तबाह हो गये। हजारो लोगोंकी जाने गयी। तो फीर क्या शिव जी स्वार्थी थे, जिन्होने सिर्फ अपने मंदीर को बचाया?  जहां शिवलिंग का अस्तित्व ही नहीं उन देशों में क्या प्रलय नहीं आते?)*


🔴ध्यान दें कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।

*🟢(इस पोस्ट से तो ऐसा बिलकुल लगता नहीं। खींच तान कर परंपरा को विज्ञान के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया है।)*


🔴जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।

*🟢(विज्ञान केवल चार सौ साल पुराना है और उस का विकास पश्चिमी देशों से हुआ है। अग्रेज़ इस देश में आने से पहले यहाँ का, परंपरा का जामा पहनाया गया, तथाकथित विज्ञान लोगों को पैदल, बैलगाड़ीसे या घोड़े पर सफर करने के लिए मजबूर करता था। ऐसे तथाकथित विज्ञान का सहारा ले कर आज भी भारतवासी कोविड १९ बीमारी से बचने के लिए गोमूत्र पी रहे हैं और गोबर में नहा रहे हैं। ये कैसा भारतीय वैज्ञानिक जीवन?)*


🔴आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में ऐसे महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक ही सीधी रेखा में बनाये गये हैं। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये? उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडु का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79°E 41’54” Longitude की भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।

*🟢(ये गलत है। ये मंदिर मंदिर एक सीधी रेखा पर नहीं आते। उस का विवरण इस प्रकार है।* *केदारनाथ30°44′N 79°04′E। रामेश्वरम 9.288°N 79.313°E। कलाशक्ती कांचीपुरम 13°44′58″N 79°41′54″E। नटराजन चिदंबरम 11°23′58″N 79°41′36″E। और इतने लंबे अंतर में एक ही रेखापर कई स्मशान आ सकते हैं, पाखाने आ सकते हैं, लोगों के घर आ सकते हैं। इस सीधी रेखा का कोई मतलब ही नहीं बनाता।)*  


🔴यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंचभूत कहते हैं। पंचभूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्हीं पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिवलिंगों को प्रतिष्टापित किया गया है। जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम् में है और अतं में अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है!

*🟢(यह श्रद्धा का, विश्वास का विषय हो सकता है। विज्ञान से इस का कोई लेनदेना नहीं लगता।)* 

 

🔴वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।

*🟢(कई मंदिरों का निर्माण और वास्तु-शिल्प वाकई सराहनीय होता है।)*


🔴भौगोलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। इन पांच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था, और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इस के पीछे निश्चित ही कोई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा।

*🟢(अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी विशेष वास्तु कला दिखाई देती हैं। जहां तक भवन निर्माण करने का प्रश्न है, यह तो सरहनीय है। लेकिन भौगोलिक रेखांकन, सीधी रेखा इस का कोई मतलब नहीं है।)*


🔴इन मंदिरों का करीब पाँच हज़ार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं थी। तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को प्रतिष्टापित किया गया था? उत्तर भगवान ही जानें।

*🟢(इस ५००० वर्ष पुराने होने के कोई पुरातात्विक प्रमाण नहीं है।  केदारनाथ मंदिर तो एक हज़ार वर्ष पुराना कहा जाता हैं।)* 


🔴केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते हैं।आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयोग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है, यह आज तक रहस्य ही है।

*🟢(अंग्रेज़ भारत में आने से पहले 'योजन', 'कोसों' में दूरी नापी जाती थी। वे आने के बाद मिल में दूरी नापी जाती थी। बादमें हम ने किलोमीटर में दूरी नापना पिछले शतक में शुरू किया। और हे मंदिर एकही रेखा में पड़ते हैं यह कथन गलत है यह ऊपर सिद्ध किया गया है।)*  


🔴श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है।

तिरुवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। 

अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। 

कंचिपुरम् के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और 

चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान की निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।

*🟢(यह श्रद्धा का, विश्वास का विषय हो सकता है। विज्ञान से इस का कोई लेनदेना नहीं लगता।)* 


🔴अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच लिंगों को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्टापित किया गया है। हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसी विज्ञान और तकनीकी थी जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होंगे जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते हैं। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है। संभवतया यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यान में रखते हुए बनाये गये हों जो 81.3119° E में पड़ता है!? उत्तर शिवजी ही जाने।

*🟢(जैसा की ऊपर बताया है, यह समान रेखा वाला दावा ही गलत है। इसे कोई आस्था समझें तो अलग बात है, लेकिन यह वास्तव या विज्ञान नहीं है।)*


🔴कमाल की बात है "महाकाल" से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच सम्बन्ध देखिये

उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी भी है रोचक-

*🟢(एक तो यह अंतर गिनने की प्रणाली भारत में पिछली सदी में आई हुई है। नीचे के जो अंतर दिये गए है वह गलत भी है। और अगर बहस के लिए सही भी माने-सही है ही नहीं- तो उस से कुछ फर्क नहीं पड़ता।)* 


🔴उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी

*🟢(गलत! यह अंतर 751 किमी है।  https://www.clearcarrental.com/ujjain-to-somnath-distance । भारतीय रेल के अनुसार यह 898 किमी है। https://www.trainspnrstatus.com/trains/somnath-ujjain#:~:text=It%20covers%20total%20distance%20of%20898%20kilometer%20in,total%20distance%20of%20898%20kilometer%20in%2018h%2010m.)* 


🔴उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी

*🟢(गलत! यह अंतर 138 किमी है। (https://www.bing.com/maps?q=ujjain+omkareshwar+distance&qs=BT&pq=ujjain+omkareshwar+distance+&sc=1-28&cvid=2C5D6BDE7E5F432E8698CE8A7DBA2B60&FORM=QBRE&sp=1)*


🔴उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी

*🟢(गलत! यह अंतर 632 किमी है। https://www.rome2rio.com/s/Ujjain/Bh%C4%ABm%C4%81shankar)* 


🔴उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी

*🟢(गलत! यह अंतर 894 किमी है। https://www.rome2rio.com/s/Kashi-Vishwanath-Temple/Mahakaleshwar-Jyotirlinga)*


🔴उज्जैन से मल्लिकार्जुन- 999 किमी

*🟢(गलत! यह अंतर 1263 किमी है। https://www.ixigo.com/how-to-reach-go-from/ujjain-to-srisailam-fast)* 


🔴उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी

*🟢(गलत! यह अंतर 1229 किमी है। https://www.bing.com/maps?q=ujjain++to++kedaranath+distance+++&qs=n&form=QBRE&sp=-1&pq=ujjain+to+kedaranath+distance+&sc=0-30&sk=&cvid=78C660D4CA4B42768C07484426D16396)*


🔴उज्जैन से त्रयंबकेश्वर- 555 किमी

*🟢(गलत! यह अंतर 502 किमी है। https://www.bing.com/maps?q=ujjain++to++tryambakeshawar+distance+++&qs=n&form=QBRE&sp=-1&pq=ujjain+to+tryambakeshawar+distance+&sc=0-35&sk=&cvid=DD2E559997324421B32A0282D7052C6D)*


🔴उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी

*🟢(गलत! यह अंतर 1331 किमी है।  https://www.rome2rio.com/s/Ujjain/Baidyanath-Temple#:~:text=Yes%2C%20the%20driving%20distance%20between%20Ujjain%20to%20Baidyanath,from%20Indore%20Airport%20to%20Kazi%20Nazrul%20Islam%20Airport.)*


🔴उज्जैन से रामेश्वरम्- 1999 किमी

*🟢(गलत! यह अंतर 2046 किमी है। https://www.bing.com/maps?q=ujjain++to++rameshwaram+++distance+++&qs=n&form=QBRE&sp=-1&pq=ujjain+to+rameshwaram+distance+&sc=1-31&sk=&cvid=BBD4EE626C3C4E87A341DECD4F697D8B)* 


🔴उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी

*🟢(गलत! यह अंतर 357 किमी है। https://www.rome2rio.com/s/Ujjain/Grishneshwar-Temple#:~:text=The%20distance%20between%20Ujjain%20and%20Grishneshwar%20Temple%20is,357%20km.%20The%20road%20distance%20is%20431.9%20km.)* 


🔴हिन्दू धर्म में कुछ भी बिना कारण के नहीं होता था ।

*🟢(धर्म की आस्था होना कोई गलत बात नहीं है। लेकिन आस्था के नाम पर गलत आंकड़े देना उचित नहीं है, आवश्यक भी नहीं है। )* 


🔴उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है, जो सनातन धर्म में हजारों सालों से मानते आ रहे हैं। इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं करीब 2050 वर्ष पहले ।

*🟢(उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र तब मानते होगे जब यहाँ यह मान्यता थी की पृथ्वी समतल है। लेकिन, अब विज्ञान ने यह सिद्ध किया है की पृथ्वी गोलाकार है।  इस कारण किसी भूभाग को पृथ्वी का केंद्र नहीं माना जा सकता।)* 


🔴और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क) अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायी गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला। आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये।

*🟢(काल्पनिक कर्क रेखा 23.43661 अंश पर है। उज्जैन 23.179301 अंश पर है। इस लिए उज्जैन कर्क रेखा पर नहीं है। और यह रेखा गोलाकार है इस लिए इस का कोई मध्यभाग नहीं हो सकता।)*  


🔴हर हर महादेव🙏साहबश्री🙏

स्त्रोत: वंदे मातृसंस्कृतम्

*🟢(वंदे मातृसंस्कृतम् द्वारा इस तरह गलत जानकारी देना और उस को धर्म के साथ जोड़ना सर्वतः अनुचित है। क्या ऐसी गलत-सलत जानकारी दे कर मंदिरों की महानता बढ़ेगी?  धर्म, आस्था अपनी जगह है। उसे बिना कोई वजह के विज्ञान के साथ घसीटकर, वह भी झूठ के आधार पर, धर्म, आस्था का क्या लाभ होगा। ऐसा क्यूँ करते है ये लोग?)*

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*चला उत्तर देऊया - टीम*

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